(An Affiliated unit of L.N.M.U, Darbhanga)
Ayachi Mithila Mahila College, Bahera was established in the year 1980, Ayachi Mithila Mahila College,
Bahera is affiliated to Lalit Narayan Mithila University, Darbhanga.
A.M.M. College, Bahera, Darbhanga is a premier institution of Bahera Municipal area in Darbhanga district under
“Mithilanchal Region.” It is a Permanent Affiliated College of L.N.M.Univ. Darbhanga. It aims at imparting higher
education among women and empowering them with the skills essential for healthy living. It has been registered
under 2(f) and 12(b) of U.G.C. This college has got the necessary managerial skill. It is a government-Grant funded
college. It is a private college under Vidyapati Seva Sansthan, Darbhanga (A Reg. Society Under Sec Society Registration Act ).
The college is situated in a Rural or Semi Urban area (Poor & Backward Mithilanchal) and has a campus of 10 acres.
सवा कट्ठा जमीन। उसपर पूरे जीवन का गुजारा। वृत्ति शिक्षा दान। और जीवन में उन्होंने कभी किसी से कुछ नहीं मांगा। ये वो गुण हैं जिससे न्याय दर्शन के विद्वान भवनाथ मिश्र अयाची हो जाते हैं। मिथिलांच में कई विद्वान हुए। कई महामहोपाध्याय हुए। पर अयाची एक। श्री मिश्र के अयाची बनने तक के सफर को बताते हुए जगदीश मिश्र कहते हैं कि मिथिलांचल विद्वानों की धरती है। यहां दर्शन की रचना हुई है। पर अयाची आज भी लोगों को याद हैं। उनके जीवन जीने की कला। उनका आदर्श। उनका त्याग। और दिए गए वचन के प्रति समर्पण ये उन्हें अयाची बनाता है। आज के भौ तिक युग में अयाची की सार्थकता और अधिक है। हालांकि उनके वशंज आज उनका नाम हर जगह रोशन कर रहे हैं। पर अयाची और न्याय दर्शन पर उनका ज्ञान लोगों तक पहुंचे इसलिए जरूरी है कि मिथिलांचल के गणमान्य दो दिन अपना समय निकाल कर अयाची डीह पर दें। वो जानें। और लोगों को बताएं। कहते हैं कि अयाची ने कभी कोई किताब या रचना खुद नहीं की। और उनके पुत्र शंकर मिश्र ने जो रचनाएं की उसमें उनका कुछ नहीं है। वो लिखते हैं कि जो भी रचना मैं कर रहा हूं ये मेरे पिता का ज्ञान है। उन्होंने मुझे सारा ज्ञान कंठ विद्या के तहत दिया। मैंने उसे लिपिबद्ध किया है। पांच साल से कम की आयु में मिथिला के राजा के सामने शंकर मिश्र ने कहा था कि बालोहं जगदानंदऽ। नमे बाला सरस्वती। अपूर्णे पंचमे वर्षे। वर्णयामि जगत्रयम। सरिसवपाही में शायद ही कोई हो जो महान विद्वान अयाची मिश्र और उनके पुत्र से जुड़ी कहानियां और किवदंतियों को नहीं जानता है। जितने मुख उतनी कहानियां। कुछ मत के मुताबिक शंकर मिश्र भगवान शंकर के पुत्र हैं, जिनकी मृत्यु अल्प आयु में हुई थी। पर कुछ इसे असत्य मानते हैं। पर उनकी विद्वाता और न्याय दर्शन पर पिता-पुत्र का ज्ञान। ये आज भी जीवंत है। साथ ही जीवित है एक दलित महिला को दान में दे दी गई शंकर मिश्र की पहली कमाई। जिससे हुआ भी तो एक पोखर का निर्माण। जो आज भी है। सामाजिक कल्याण के लिए। यही वो दर्शन है जो न्याय दर्शन से अलग है पर सामाजिक दर्शन में काफी लोकप्रिय। जिसने भवनाथ मिश्र को अयाची बना दिया। आज लगभग 400 साल कंप्यूटर चलानेवाली पीढ़ी के बीच अयाची जीवित हैं। अपने दर्शन के साथ। अपने त्याग के संदेश के साथ।